सूरज का टुकड़ा…
अपनी तलाश में, बिछड़ा सूरज का टुकड़ा है,
घोर घाम से लोहा लेने को अलबेला अड़ा है।
ओस की बूंद “सारा” राहत देती अपनों को,
धूप में जब इंद्रधनुष सी चमकती है।
टूट कर गिरी थी कभी आसमान से,
अपनों के लिए बनी वही ज़मीं का सितारा है।
करती जद्दोजहद दिन-रात फिर भी,
स्वस्तिक दीपक वह माँ-बाप की है।
चूल्हा फूंकते आँखे जल उठती है उसकी,
जब हांडी चावल पकाने को चढ़ाती है।
दो-दो हाथ करती है जिंदगी के थपेड़ों से,
वह किताबों से जीवन का संघर्ष सीखती है।
जिंदगी है संगीत राहें मुश्किल सरगम सी,
धुन अपनी तैयार कर राहें अपनी चुनती है।
क्योंकि…वह
अपनी तलाश में, बिछड़ा सूरज का टुकड़ा है,
घोर घाम से लोहा लेने को अलबेला अड़ा है
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)