“सुगर”
“सुगर”
कितना अच्छा होता
अगर सुगर जुबान से परखी जाती,
रुपये भी बचते
कई लफड़ों से मुक्ति मिल जाती।
लेकिन विरोधाभाष यही कि
शरीर मे सुगर की मात्रा बढ़ रही है,
मगर लोगों की जुबान से
निरन्तर मिठास क्यों घट रही है?
“सुगर”
कितना अच्छा होता
अगर सुगर जुबान से परखी जाती,
रुपये भी बचते
कई लफड़ों से मुक्ति मिल जाती।
लेकिन विरोधाभाष यही कि
शरीर मे सुगर की मात्रा बढ़ रही है,
मगर लोगों की जुबान से
निरन्तर मिठास क्यों घट रही है?