सियासत-ए-धर्म
हर तरफ़ आक्रोश का ये सैलाब आया है
पता करो अब कौन सा हिसाब आया है
लहू गिर रहा है … ये देश जल रहा है
आज सड़कों पर उठकर इंकलाब आया है ।
और हमपे तुम लाठियां बरसाते हो …
अरे तुम्हें शर्म नही इतना कहर ढाते हो
ये धर्म के चश्में तुम उतार क्यों नही देते
ज़रा सी बात है कानून को सुधार क्यों नही देते ।
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख और क्या ईसाई
तुम अलग बांट रहे हो …तुम्हें शर्म क्यू नही आई ।
इस एकता के डोर में बंधे हुए है सब यहाँ
ना अलग होने की कसमें आजादी के समय ही खाई ।
तुम कहते हो कि ये छात्र सड़कों पे क्यों आये है
असल में ये तुम्हें संविधान समझाने आये है ।
नागरिक है सभी यही के …यही मिट्टी है उनकी
वो इस मोहब्बत का परचम लहराने आये है ।
मर के मिट्टी में दफ़न एक न एक दिन होना ही है
आज इस आवाज़ को दबाए तो हर दिन रोना ही है
लगा दो तुम अपनी जानें भला इसमें डर कैसा
ताबूत में आंखे बंद करके तो सोना ही है ।
नफरतों की आग से बाहर क्यों नही आते
ये देश सभी का है समझ क्यों नही जाते
मेरी कोशिश यही है कि ये दंगा बन्द होना चाहिए
हर हिंदुस्तानी के दिल मे तिरंगा होना चाहिए ।
– हसीब अनवर