सिंधु का विस्तार देखो
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है अपरिमित सिंधु का विस्तार देखो।
दूर तक है जल भरा आगार देखो।
दृष्टि भी बिल्कुल ठहर पातीं नहीं है।
पास देखो नील नभ के पार देखो।
आज बहुतायात में उड़ते परिंदे।
चाहतों का है विपुल संसार देखो।
चाहता मन स्वप्न सुन्दर देखना जब।
भावनाओं का अमित संचार देखो।
हर्ष के अवसाद के आंसू छलकते।
छोड़ दो नफरत सभी में प्यार देखो।
आसमां पर आ गये हर ओर बादल।
बारिशों के हैं बहुत आसार देखो।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)