साहित्य क्या है ?
समय, लिंग, जाति, स्टेटस इत्यादि की सामाजिक अवस्था जैसी होती है, उसका साहित्य भी वैसा ही होता है। जातियों की क्षमता और सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है, तो उनके साहित्य -रूपी आईने ही में मिल सकती है, इस आईने के सामने जाते ही हमें तत्काल मालूम हो जाता है कि अमुक जाति की जीवनी -शक्ति इस समय कितनी और कैसी है, साथ ही भूतकाल में कितनी और कैसी थी ?
आप भोजन करना बंद कर दीजिए, आपका शरीर क्षीण हो जाएगा और कदाचित नाशोन्मुख होने लगेगा! इसीतरह आप साहित्य के रसास्वादन से अपने मस्तिष्क को वंचित कर दीजिए, वह निष्क्रिय होकर धीरे -धीरे किसी काम का न रह जाएगा । सच ही, हमारी सामाजिक स्थिति -गति का प्रतिबिंब साहित्य में दिखाई देता है और साहित्य का प्रभाव हमारे मन और मस्तिष्क पर पड़ता है।