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25 Jul 2022 · 4 min read

सावन

सावन

हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल का पांचवा महीना सावन आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने की पहली शुक्ल तिथि से नव वर्ष, नव संवत का आगमन होता है। यह इसलिए कि पुराणों और ग्रंथों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था।इसीलिए पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा को ही नव वर्ष आरंभ हो जाता है। इस नवसंवत का आरंभ महाराजा विक्रमादित्य ने उस समय के सबसे बड़े खगोल शास्त्री वराह मिहिर की सहायता से किया था। इसी नव वर्ष के महीनों का नाम चैत्र ,वैशाख ,ज्येष्ठ ,आषाढ़ ,सावन (श्रावन)भाद्रपद ,अश्विन ,कार्तिक, मार्गशीर्ष ,पौष ,माघ और फाल्गुन है। हिंदी कैलेंडर की शुरुआत चैत्र माह से और अंत फाल्गुन से होता है। प्रकृति में मौसम का संतुलन बनाए रखने के लिए सभी महीनों का अपना-अपना महत्व होता है ,परंतु इस लेख में मैं केवल सावन महीने पर प्रकाश डालना चाहूंगी।

साल भर के सबसे अधिक उष्णता लिए महीने ज्येष्ठ और आषाढ़ की भयंकर गर्मी से सारे जीव- जगत और धरती माता को राहत दिलाने के लिए सावन और भाद्रपद महीने की मुख्य भूमिका रहती है। भयंकर गर्मी के मौसम में धरती पर जलाशय सूख जाते हैं ,पेड़ पौधे मुरझाने लगते हैं, भयंकर गर्म हवाएं बहने लगती हैं ,जीव -जगत गर्मी से त्राहिमाम कर उठता है। तब सावन की बरखा बहार जीव -जगत और प्रकृति को नव ऊर्जा ,नव संचार प्रदान करती है। चहुं ओर हरियाली ही हरियाली ,हर प्रकार के जलाशयों में जल की भरमार, प्रकृति में जीव -जगत का कलरव -कोलाहल सुनने व देखने को मिलता है। इसी मौसम में बहुत सारे जीवों का प्रजनन समय भी रहता है।
वैसे तो इस मौसम में उमस भरी गर्मी रहती है परंतु समय -समय पर बारिश की बौछारें इस गर्मी को शांत करती रहती है।
वर्तमान समय के इस भाग- दौड़ के समय में बहुत परिवर्तन हुआ है। भारत के कई राज्यों में सावन के महीने में नई विवाहित लड़कियां अपने मायके आती थी, और अपनी सखियों के साथ खूब अठखेलियां करती ,हाथों -पैरों में मेहंदी लगाती, नाच- गाना करती, बागों में पींगों के लंबे -लंबे हिलोरे लेती । परंतु हिमाचल प्रदेश में नवविवाहित लड़कियां भाद्रपद महीने में अपने मायके आकर इसी तरह की खूब मौज मस्तियां करती थी। इसके पीछे यह मान्यता थी कि इन महीनों में नई दुल्हन अपनी सास के साथ नहीं रह सकती थी। इस तरह नवविवाहित लड़कियों को अपने मायके या पीहर आने का बहाना मिल जाता था, परंतु अब शादी के तुरंत बाद लड़कियां अपने पति के साथ घर से बाहर रहती हैं या कुछ लड़कियां इस पुराने रीति रिवाज को मानती ही नहीं।
सावन के महीने को हरियाला महीना भी कहते हैं, क्योंकि सावन महीने में चारों और हरियाली ही हरियाली नजर आती है। हरा रंग सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है इसलिए इस महीने सुहागिन महिलाएं हरे रंग के वस्त्र हरे रंग की चूड़ियां अधिक पहनती हैं। इस महीने मेहंदी की डाली भी यौवन पर रहती है। महिलाएं अपने हाथों पैरों में खूब मेहंदी रचाती हैं। आधुनिक समय में मेहंदी के बने बनाए कोन मिलते हैं, जब जी चाहे हाथों -पैरों में मेहंदी लगा सकती हैं, परंतु पहले मेहंदी की पत्तियों को तोड़कर उसे सिलबट्टे पर पीस कर हाथों पैरों में लगाते थे।
सावन की बहारों में भीगना भी एक रिवाज था। हिमाचल प्रदेश में इन दिनों प्रति वर्ष स्कूलों में छुट्टियां होती हैं ।इसलिए बच्चे पशुओं को चराने के बहाने घर से बाहर रहते थे और बड़े लोग ग्रामीण परिवेश में घास लाने या खेतों में काम करते हुए वर्षा में खूब भीगते थे। बड़े बुजुर्ग लोग कहते थे कि सावन में भीगने से साल भर की आंतरिक गर्मी शांत होती है और सेहत भी बनती है। बच्चे तो बच्चे होते हैं परंतु पशुओं को भी खूब भिगोया जाता था। अब यह बातें देखने को नहीं मिलती अब तो पशुओं के लिए भी गौशाला में पंखे लगे हैं धीरे-धीरे पुराने रीति रिवाज कुछ-कुछ लुप्त होते जा रहे हैं।

सनातन धर्म के लोग सावन में भगवान शिव भगवान माता पार्वती की पूजा करते हैं कहा जाता है कि यह सावन भगवान शिव और पार्वती के मिलने का महीना है। इसलिए इन दोनों को यह महीना बहुत प्रिय है। सावन महीने में शिव भक्त पूरे महीने का उपवास रखते हैं तो कोई -कोई केवल सोमवार का उपवास रखते हैं तो कोई केवल प्रतिदिन पूजा ही करता है।इस महीने लोग दूध, दही, शहद, शक्कर घी के पंचामृत व जल से अभिषेक कर के फूल, बेलपत्र ,द्रूवा, भांग, धतूरा ,आक ,फल अर्पित करके ओम नमः शिवाय का जाप करते हैं। कई -कई भक्त गण तो गंगा नदी से कांवड़ में गंगाजल पैदल यात्रा करके लाते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। ऐसा करने से भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

Language: Hindi
Tag: लेख
145 Views
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