सावन
घनाक्षरी
सावन में झूल झूल ,सब नाचें गायें झूम।
विरह व्यथा को भूल, कजरी जो गाती है
राधा कान्हा अब मिले, कालिंदी के तट चले।
कान्हा वंशी जब बजे, सुधि बिसराती है ।
पुष्प सजे सेज पर, स्वप्न जगे मेल कर।
प्रीतम की पाती पढ , नैना बरसाती है।
सावन संयोग करे, विरहिणी नेत्र झरे।
बिरहा व कजरी को, सुबक सुनाती है।
डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव