सावन के दोहा
सावन में हरिहर भइल, सगरो खेत बघार।
सखियन के झूला पड़ल, खुश बा गाँव जवार।।
सावन मनभावन भइल, हरिहर भइल जहान।
झूला बगियन में पड़ल, विखरल कजरी गान।।
सावन बिन साजन कहाँ, शीतल कहाँ फुहार।
भकसावन लागत हवे, घरवा अउर दुआर।।
कलि कलि मुसुकाति हऽ, उपवन महकत आज।
जहिया से भइलो सखी, सावन के आगाज।।
रिमझिम बरसे बूनिआ, शीतल मंद समीर।
साजन बिन देखऽ सखी, धइल न जाला धीर।।
सावन बीतल जात बा, बरसत नैनन नीर।
साजन ना अइलन सखी, मनवा भइल अधीर।।
सावन शिव के माह हऽ, चलिहऽ बाबाधाम।
दुख सगरो पल में मिटल, जे लिहलन शिव नाम।।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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