” सारी भाषाएँ हमारी बहनें “
डॉ लक्ष्मण झा” परिमल ”
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हम जब भी किन्हीं भाषाओँ में कुछ लिखते हैं तो हमें बहुत सी बातें अपने मस्तिष्क में रखनी पड़ती है !….. भाषा की शुद्धता ,….विषयों का चयन ,अभिव्यक्ति की कला ,….शालीनता ,……मर्यादा और …..सकारात्मक विचारों के समिश्रण से हमारी लेखनी निखरने लगती है और उसे पढकर लोगों के ह्रदय गदगद हो उठते हैं ! ..परंच…… विषयों का चयन ,……अभिव्यक्ति की कला ,…..शालीनता ,..मर्यादा और… सकारात्मक विचारों का अवलोकन बाद की बात हो सकती है !…….. हमारी कृतियाँ मैथिली ,अंग्रेजी ,बंगला ,हिंदी और विश्व के तमाम भाषाओँ में क्यों ना लिखी जाती हो…..पर भाषों की शुद्धता की अग्नि परीक्षा से हमें गुजरना ही पड़ता है !…. शब्दों के विकृति रूपों को कभी मान्यता नहीं मिल सकती है ! …प्रत्येक साहित्य अपनी बुलंदिओं को छू रहा है ! श्रृंगारिक शब्दकोशों के परिधानों से हमारा साहित्य निखर चुका है ! ….हम यह मान सकते हैं कि कथा के पत्रों की भाषा और संबाद उनके ही रूप में कही जाएगी ..हो सकता है उसकी भाषा और उसकी अभिव्यक्ति उसके अभिनय के अनुरूप हो ..भाषा का रूप भिन्य होने के बाबजूद भी हमारे साहित्य के प्राण बन जाते हैं ! …यदाकदा कंप्यूटर की अशुद्धता को हम स्वीकार सकते हैं …पर भाषा की अशुद्धता को शायद ही कोई कबूल करे !
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डॉ लक्ष्मण झा” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत