साया
साया
अब हर बात से
डर लगता है मुझको
मेरा ही साया
डसता है मुझको
मेरी ही नींद
बेचैन करती है मुझको
हर पल एक अनजाना
भय घेरे रहता है मुझको।
खुद से ही अब मैं
रुठी रुठी सी रहने लगी हूँ
कितना भी मग्न हो लूँ खुद में
मगर बेमग्न सी मै दिखने लगी हूँ।
विचलित सी मेरी काया
बेरुखी सी मेरी बातें
अनसुनी सी कितनी आहटे
प्यासी सी मेरी नज़र
न जाने किस कशमकश
में गुम रहने लगी हॣॅ।
आजकल कुछ रास नहीं आता
यूँ घूमना फिरना भी
मन को नहीं भाता
अपना यह दर्द किसी को
सुनाया भी नहीं जाता
जिंदगी के किस रंजो ग़म
में मैं रहने लगी हूँ
खुद से ही अक्सर
बातें करने लगी हूँ ।
हरमिंदर कौर, अमरोहा उत्तर प्रदेश