“ साथ हमारी कविता है “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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ऐसा भी होता है
जब किसी क्षण हम
निशब्द हो जाते हैं !
घोर अंधेरों में हम
भटकते रह जाते हैं !!
दिशायें दिखती नहीं
मंजिलों के रास्ते
धुंधले पड़ जाते हैं !
दूर – दूर तक
कोई दिखता नहीं ,
किसी की उँगलियाँ
थाम के चल देता ,
और खोजता प्रकाश को !
पर कोई नहीं है
साथ मेरे ,
कल्पनाएं भी तो
शिथिल पड़ गयीं ,
हम अकेले तन्हाईयों
में नक्षत्रों के सितारे
गिन रहे थे !
धीरे – धीरे चुपके -चुपके
अधेरी रातों में
मेरी पीठ को
किसी ने सहलाया !
मेरे कानों में धीरे -धीरे
चुपके चुपके गुनगुनाया !
कहा –“ तुम्हारी कविता हूँ ,
मैं तुम्हारी संगिनी हूँ !
भला तुमको कैसे छोड़ूँगी ?
तुमने हमको रूप दिया ,
शृंगारों से हमको सजा दिया !
अलंकारों से तुमने
अलंकृत कर डाला ,
संगीतों के धुन से
हमको सजा दिया ,
तुमने हमको परिपूर्ण किया !
अब तुमको मैं ना छोड़ूँगी ,
हर क्षण मैं साथ निभाऊँगी !!” –
हम खुश होकर
यूं झूम उठे ,
वीरानों में मेरी कविता
ही मेरे साथ रही ,
हमें अब क्या गम
इन तिमिरों से
अब डरना क्या इन रातों से ?
अब साथ हमारी कविता है ,
हमें अब दुनियाँ से क्या लेना ??
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड