*सातवाँ तलाक (कहानी)*
सातवाँ तलाक (कहानी)
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ज्योत्स्ना करवा चौथ की तैयारियों में व्यस्त थी । लाल रंग का लहँगा विशेष रुप से उसने आज की तैयारियों के हिसाब से निकाल कर रखा था । पहन कर ही देख रही थी । सोने का हार तथा विशेष रुप से माथे का टीका उसने आभूषणों के रूप में आज के दिन के लिए निकाल कर रखा था । सुबह से कुछ नहीं खाया था । जब से शादी हुई, ज्योत्स्ना का यही नियम चल रहा है ।अब अठ्ठाईस साल हो गए हैं ।
तभी मिसेज कंचन का फोन आया ।” सुना है ज्योत्स्ना ! तुम करवा चौथ का व्रत रख रही हो । खुद भूखी – प्यासी हो, पति खा रहे हैं । आखिर तुम ऐसे शोषण के बारे में सोच भी कैसे सकती हो ?”
ज्योत्स्ना ने जब फोन पर मिसेज कंचन की यह बात सुनी , तो उसकी समझ में नहीं आया कि आखिर यह पार्टी – लाइन से हटकर कौन सा ऐसा गुनाह उसके द्वारा हो रहा है ,जिस पर जिला अध्यक्ष की फटकार सुननी पड़ रही है ।
“लेकिन अध्यक्ष जी ! हम लोग करवा चौथ तो हमेशा से मनाते रहे हैं । हमें तो इसमें कुछ बुरा नजर नहीं आता । ”
“यही तो तुम लोगों की कमी है।” मिसेज कंचन ने कहा “तुम नहीं समझते कि आखिर यह पुरुष तुम्हारा शोषण किस प्रकार से करते हैं ? यह सब तुम्हें पुरुषों का गुलाम बनाने की साजिश है । अगर करवा चौथ मनानी ही है तो साफ-साफ कहो ,व्रत और उपवास पति और पत्नी दोनों रखेंगे। चंद्रमा को देखकर जल दोनों चढ़ाएँगे और एक साथ भोजन को लेंगे। अगर सजना- सँवरना है है तो केवल स्त्री ही क्यों ? आवाज बुलंद करो । बगावत का झंडा उठा लो और पुरुषों से कह दो कि अब बस ! बहुत हो चुका। अब हम एक समान हैं।”
सुनकर ज्योत्स्ना कुछ परेशान होने लगी ,लेकिन फिर भी उसने अपनी भावनाओं पर काबू रखा और मिसेज कंचन से कहा “अध्यक्ष जी ! ज्यादा अच्छा तो यह होगा कि पार्टी की एक मीटिंग बुला ली जाए और करवा चौथ के बारे में विचार विमर्श कर लिया जाए । आज तो करवा चौथ है। कल सुबह ग्यारह बजे आप मीटिंग बुला लीजिए ।”
सुनकर उधर से मैसेज कंचन की आवाज आई ” नहीं-नहीं ! ज्योत्स्ना ! कल मेरे पास बिल्कुल भी समय नहीं है । कल को तो ग्यारह बजे मेरा वकील साहब से अपॉइंटमेंट है । मुझे अपने पति से तलाक लेना है ।”
“तलाक ! अभी तो आपकी शादी को कुल छह महीने ही हुए हैं ? ”
“तो क्या हुआ ? क्या हम छह महीने में तलाक नहीं ले सकते ? यही तो हमारी आजादी है । मैंने तो छह बार तलाक ले लिया है । अब यह सातवाँ तलाक है ।”मिसेज कंचन ने खुशी से उछलते हुए कहा तो सुनकर ज्योत्स्ना ने कहा “माफ कीजिए अध्यक्ष जी ! आपकी आजादी सात तलाक पर टिकी हुई है और हमारा विवाह – बंधन सात जन्मों के साथ पर टिका है। आपके लिए तलाक लेना कपड़े बदलने के समान है । मैं इससे सहमत नहीं हूँ। ”
-कहकर ज्योत्स्ना ने फोन रख दिया और माथे पर टीका लगाकर चाँद देखने की तैयारी में जुट गई ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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