साज रिश्तों की खनक का
दो दिल हैं
उनको बांधती दो तारें
एक मोहब्बत की
दूसरी नफरत की
एक जुड़ी हुई
दूसरी टूटी हुई
एक धातु की, कम्पन करती
दूसरी कांच की, अंगुली काटती
एक बनना चाहे सोने का आभूषण
दूसरी मिट्टी का खिलौना
एक सहेजना चाहे तिनकों को
दूसरी बिखेरना चाहे गुलशन को
एक बसाना चाहे घरौंदा
दूसरी उजाड़ना चाहे आशियाना
एक संजीदा, फिक्रमंद, शाइस्ता
दूसरी बिगड़ैल, बेकाबू और सबसे
जुदा जुदा
एक चाहे राग अलापना
दूसरी सुर बिगाड़ना चाहे
यह हो गर आलम
ऐसे हों मिजाज अलग
अलग तो
साज रिश्तों की खनक का
कैसे बजे।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001