साक़ी मुझे अब पूछता नहीं
2212 + 2212 + 12
साक़ी मुझे अब पूछता नहीं
प्याला अजब है, टूटता नहीं
वो प्यार की चाहत कहाँ गयी
क्यों दिल इसे अब लूटता नहीं
पागल रहे जिनकी तलाश में
क्यों दिल उन्हें अब ढूँढ़ता नहीं
टूटा खुदी से राब्ता जहाँ
कोई तुम्हे फिर पूछता नहीं
अन्तरमुखी इक क़ैद में जिया
क्यों मोह सबसे छूटता नहीं