***साइकिल की शानदार सवारी ***
? प्रथम पाठशाला?
साइकिल की शानदार सवारी
बात उन दिनों की है जब मैं सन 1970 में प्रथम पाठशाला याने आज की प्री नर्सरी उस जमाने में बाल विद्या मंदिर हुआ करता था। मेरे पापा बैंक में ब्रांच मैनेजर के पद पर कार्यरत थे उन्होंने मेरा दाखिला बलौदाबाजार में बाल विद्या मंदिर में कराया था वैसे बैंक की सर्विस एक जगह स्थाई नही होती है यहाँ वहाँ एक दूसरे जगह तबादला होते रहता है लेकिन अभी हम भाई बहन छोटे थे इसलिए स्कूल में एडमिशन करा दिया गया था।
मेरे पापा के बैंक का ऑफिस घर में ही सामने लगता था पीछे सरकारी क्वाटर्स बने हुए थे कभी भी कुछ काम हो या कुछ कहना होता तो जल्दी से जाकर पापा से कह देते थे बैंक की सर्विस में बडी गाड़ी जीप एवं घर के काम करने के लिए चपरासी भी दिये गए थे।
अब स्कूल जाने के लिए मम्मी बैग टिफ़िन तैयार करके देती थी और मेँ और मेरा छोटा भाई जीप में बैठकर स्कूल जाते थे लेकिन कभी कभी पापा ऑफिस के काम से बाहर ले जाते थे तो हमारी मुश्किल हो जाती थी तो हमारा चपरासी कहता था कि काहे को परेशान होते हो हम है न हम आप लोगों को अपनी साइकिल से स्कूल छोड़ेंगे हम लोग कहते दोनों भाई बहनों को एक साथ साइकिल में कैसे बैठा सकते हो अरे बेटा चिंता मत करो हम अभी इतंजाम करते हैं मुझे तो पीछे साइकिल की पीछे वाली सीट पर बैठाया और छोटा भाई को सामने केरियल याने एक डंडी की तरह से उसमे मोटा सा कपड़ा लपेटकर गद्दी की तरह बना दिया अब छोटे भाई से आओ राजा बाबू तुम्हे हम सामने वाली सीट पर बैठाते हैं और हम दोनों को अच्छे से साइकिल में बैठाकर स्कूल की ओर रवाना हुए जाते समय हरी भरी वादियों का नजारा देखते हुए हमारी साइकिल की शानदार सवारी चल पड़ी थी वो स्कूल का प्रथम पाठशाला की सुनहरी यादें अभी भी जहन में ताजा है ।
शशिकला व्यास
भोपाल मध्यप्रदेश
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