!! सांसें थमी सी !!
वो पास है पर लकीरें
आधी आधी लगती है,
सुरत सोई और सीरत
जागी जागी लगती हैं।
उसके चेहरे को देखूं तो
इंकार दिखता है,
निगाहों में झांकूं तो
राज़ी राज़ी लगती है।
जो उसे देखलूँ तो
सांसे थम सी जाती है,
छोरी झूमका पायल
पहाड़ नशीली लगती है।
छोरा बिन पिए
मधोश लगती है,
सांसें थम सी गई है
जब से तुम दिख गई है।।
कवि:- राजा कुमार ‘चौरसिया’
सलौना, बखरी, बेगुसराय