सांप और इंसान
साँप और इंसान
साँपों की बस्ती में देखा, नाग विषैले भाग रहे।
घुस आया इंसान एक, सब डर के मारे जाग रहे ।।
डरता ना इंसान, साँप अब इंसानों से डरता है।
काटे चाहे कोई किसी को, किन्तु साँप ही मरता है।।
चाहे विष हो या कालापन, या हो टेढ़ी-मेढ़ी चाल ।
इंसानों से जीत न पाते, साँपों को बस यही मलाल ।।
विष को खाना विष को पीना, और विषवमन करते जीना ।
छोड़ दिया है साँपों ने अब, इंसानी फितरत से जीना ।।
लिए साँप के फन हाथों में, फिरते हैं ये लोग महान ।
इस डर से ये साँप मर रहे, कहीं काट ना ले इंसान ।।
साँप सपेरा जादू टोना, ये सब बात पुरानी है।
अब इंसानों की फितरत से, साँपों में हैरानी है ।।
साँप काटते नहीं जभी तक पड़े पूँछ पर पाँव नहीं ।
कौन कहाँ कब कैसे काटे, इंसानों का ठाँव नहीं ।।
प्रकाश चंद्र रस्तोगी, लखनऊ
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