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29 May 2020 · 1 min read

सांपों का जश्न

जब शहर में मानसिक दासता का अँधेरा था!
उस वक्त भी रौशनी से जगमग घर मेरा था !!

एक अजब सा जश्न था साँपों का कल,
सुना है बढ़ा ही पहुंचा हुआ सपेरा था !!

अट्टहास में बेसुने हो गये चीत्कार उनके,
जिनके घर पर कल मौत का बसेरा था !!

गर्दिश के हालात हैं माँ ने हंसना छोड़ दिया,
जब देखा, कर्फ्यू में भी हुजूम का डेरा था !!

मेंढकों की टर्राहट की ज़द में था शहर सारा,
और कोयल चुप थी कि बड़ी दूर सवेरा था !!
✍ Lokendra Zahar

7 Likes · 5 Comments · 734 Views
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