सांझ अमर हो जाएगी …….
सांझ अमर हो जाएगी …….
पलक पंखुड़ी में प्रणय अंजन से
सुरभित संसृति का श्रृंगार करो
भ्रमर गुंजन के मधुर काल में
कुंतल पुष्प श्रृंगार करो
तृप्त करो तुम नयन तृषा को
मिलन क्षणों को स्वीकार करो
अपने उर में अपने प्रिय की
अनुपम सुधि से श्रृंगार करो
विस्मृत कर प्रतिकार सभी तुम
प्रेम श्वास श्रृंगार करो
चिर सुख के प्यासे अधरों पर
तृप्ति वृष्टि का संचार करो
अभिलाषाओं की बस्ती में तुम
प्रेम तृणों से श्रृंगार करो,
लाज के बंधन छोड़ छाड़ के
भुजबंधन स्वीकार करो
सांध्य बेला में दृग हाला से
हिय तृषा का श्रृंगार करो
अनुत्तरित रहने तो हर पल
सब प्रश्न मौन हो जाएंगे
साँझ की दस्तक
होते ही नभ पर
हम तुम
हम
हो जाएंगे
वो सांझ अमर हो जाएगी
जब
सांझ में हम खो जाएंगे
सुशील सरना