सहारा
कितने दिनों पहले तुम्हें देखा था
अपनी उम्मीद भरी आंखों से
और चाहा था दिल से
आज वहीं से दूर रहकर मैं
सोचता हूं तेरे प्यार के बारे में
और सोचता हूं तेरी मासूमियत को
मैं नहीं जानता कि तुम्हारे दिल में
कहने को भी कुछ है या नहीं
पर यह जानता हूं कि मेरे प्यार
और मुहब्बत में कोई दाग नहीं
अब मेरी कोई चाहत नहीं
और न ही इच्छा रह गयी है
पर पिछले दिनों की याद आती है
और रह-रह कर चुभ जाती है
मेरे दिल में एक सूई की तरह
आत्मबल के कारण ही
मैं सह पाता हूं उसे
घायल की तरह छटपटाकर
रह जाता हूं मैं
आखिर यही तो एकमात्र
मेरे जीने का सहारा है।