” सहमी कविता “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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नहीं भाई
नहीं हमसे
कविता नहीं
लिखी जाएगी
अब तो मौन
रहकर सभी
बात कही
जाएगी !!
जहाँ भी देखो
हाहाकार
मौत का तांडव
हो रहा है !
लोग अपनों
को खोने की
प्रतियोगिता
कर रहा है !!
कोरोना किस
के सर पे चढ़के
अपना नृत्य
दिखायेगा ?
मिस्टर एक्स
बनके अदृश्य
होकर कब
तक हमें
सताएगा ?
हम सोते है
तो स्वप्नों में भी
कोरोना के
राक्षस दिखते हैं !
दिन में भी
उसके साये से
सब लोग यहाँ
पर डरते हैं !!
क्या देखें क्या
हम सुने यहाँ
सब चेंनेल भी
बेकार बने हैं !
असली मुद्दे
को छोड़ यहाँ
हिन्दू मुस्लिम
की बात कह रहें हैं !!
कल्पना ,राग ,
लय कुंठित
होकर
क्या कविता
हम लिख पाएंगे ?
हम सहमेंगे ,
लिख ना सकेंगे
कविता का
रूप ना सजा पाएंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत