सविता की बहती किरणें…
पसरा सन्नाटा सड़कों पर,
धूप ने डेरा डाला।
सविता की बहती किरणों ने,
फिर प्राणों को उबाला।।
अर्घ्य दिया भानु को लेकिन है,
गुस्से का खारा बड़ा।
तेंवर सप्त तुरंगी संँग रथ,
उस पर है दिनमणि खड़ा।।
अवसर वादी ठंडी ऋतु में,
पकड़े शांति का पाला।
है अध्यक्ष धूप अनुचर सी,
भूप के पीछे जाएँ।
छाँव बंँधी बेड़ी से उसको,
कौन अनघ आ छुड़ाएंँ।।
अंकुश कौन लगाए उस पर,
करें जो गड़बड़ झाला।
निश्छल मन के मौन बटोही,
बैठे राह में तपते।
प्यासे पंछी नीर आस में,
नभ अनिमेष हो तकते।।
शिशुवत भिनसारे को किसने,
बना दिया है ज्वाला।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)