सवालों ने तुम्हारे घर को ही थाना बना डाला
जो हमने की शिकायत तो उसे ताना बना डाला
सवालों ने तुम्हारे घर को ही थाना बना डाला
नशा इनमें अभी तक है पुरानी मय के जैसा ही
तुम्हारी आंखों को ही अपना पैमाना बना डाला
लगाया तुमने ऐसा रंग हमको है ये होली में
हमारे दिल को तुमने अपना दीवाना बना डाला
हमारे इस बुझे दिल मे जलाये दीप जो तुमने
ज़माने को न भाया उसने अफ़साना बना डाला
तसव्वुर में हमारे तो बसे हो सिर्फ़ तुम ही तुम
हमें तो प्यार ने खुद से ही अंजाना बना डाला
हैं जितनी यादें उतनी बोतलें हैं ‘अर्चना’ मय की
सजाया दिल मे उनको यूँ कि मयखाना बना डाला
11-03-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद