सवालों के घेरे में देश का भविष्य
खेलने की उम्र में कूड़े के ढेर से कूड़ा बीनते बच्चे, ट्रैफिक सिगनल पर कला बाजियां खाते, तमाशा दिखाते, भीख मांगते, खिलौने, पेन्सिल, अखबार, गुब्बारे, फूल आदि बेचते बच्चे, देखने को मिल ही जाते हैं। इन अभागे बच्चों की संख्या हमारे देश में हजारों लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है जो कि हमारे लिए शर्म की बात है। केवल पेट भरने के अतिरिक्त इन बच्चों को जन्म देने वाले माता-पिता भी अपने पापी पेट का वास्ता देकर पल्ला झाड़ लेते हैं। वहीं सरकार अच्छे दिन आयेंगे का कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। अब दोष दिया भी दिया जाये तो किसको? यही कारण है कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता आ रहा है और यह । सिलसिला अनवरत गति से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी हस्तांतरित होता आ रहा है जो कि बहुत चिन्ता का विषय है।
इस समस्या के लिए हमारी सरकार पूरी तरह से दोषी है। बच्चे जिन्हें राष्ट्र का भविष्य कहा जाता है वह बच्चा चाहे गरीब का हो या अमीर का, वह राष्ट्र की अनमोल धरोहर कहा जाता है लेकिन सच्चाई कुछ और ही है, प्रश्न उठता है कि देश में राइट टू एजूकेशन एक्ट लागू करने से क्या हासिल, जब सभी को ज्ञात है कि भूखे पेट भजन न होवे, कहावत यूं ही तो नहीं बनी।
गली-गली शिक्षा पहुंचाने से पहले यदि सरकार गली-गली रोजगार पहुंचाने और उनकी शिक्षा, आवास की व्यवस्था उपलब्ध करा दे , तो मुझे नहीं लगता कि इस समस्या का समाधान न निकल पाये। आवश्यकता तो बस सार्थक कदम उठाने की है वहीं हम लोगों को भी गंभीरता से इस विषय में सोचना चाहिए कि क्या इन मासूमों को दान देकर या उनमें सामान खरीदकर आप अपना कर्तव्य निभाते हैं? ऐसा करना क्या उचित है? यह अभागे बच्चे भी हमारे समाज का ही हिस्सा है और इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आपकी थोड़ी सी सहानुभूति, थोड़े से प्रयास की आवश्यकता है। यह प्रयास आप उनका मार्गदर्शन करके उन्हें रोजगार के साथ शिक्षित होने की प्रेरणा भी प्रदान कर सकते हैं। निश्चित हो आपका छोटा सा प्रयास इस समस्या के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद