सरस्वती वंदना
माई तुहरी किरिनिया अँजोर करे हो
ईहे मनवा के करिया से गोर करे हो
हम त अबोध माई कुछऊ न जानीं
तुहईं से लड़ीं झगरीं तुहईं के मानीं
तोहरे लिखावल गितिया सबके सुना के
दुनिया में घूमीं आपन मथवा उठा के
ईहे लोगवा के मनवा विभोर करे हो
माई तुहरी…………..
रहिया भुलाई तब तुहईं देखइह
सगरो भरम हमरे मन के मेटइह
पोथिया से ज्ञान दीह बिनवा से गितिया
हथवा उठा के मन में भरिह पिरितिया
नमवा बेटवा तुहार चारू ओर करे हो
माई तुहरी……………..
सपनों न होखे माई केहुए से रार हो
कबहूँ न टूटे पावे धीर के अड़ार हो
एके लेखां बूझत रहीं राम के रहीम के
नेह छोह दिहले रहिह असहीं ‘असीम’ के
रतिया केतनो अन्हरिया, ई भोर करे हो
माई तुहरी……………..
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’