सरसी छंद
सरसी छंद16/11
संयोग
सृजन पंक्ति-प्रथम मिलन यह देवी तुमसे,
फुलवारी है खिल के महके, छेड़े कोयल साज।
प्रथम मिलन यह देवी तुमसे, हृदय बसी तुम आज।।
देखा तुमको जब से मैंने, मनवा है बेचैन।
अपलक देखूँ सुंदर मुखड़ा, जादू करते नैन।।
रोम रोम है पुलकित मेरा, ऐसा है अंदाज।
प्रथम मिलन यह देवी तुमसे, हृदय बसी तुम आज।।
जन्म जन्म की साथी लगती, विधना का है लेख।
संग तुम्हारे रहना मुझको, कहे हाथ की रेख।।
विचलित होता मन है मेरा, तुमको दे आवाज।
प्रथम मिलन यह देवी तुमसे, हृदय बसी तुम आज।।
रूप तुम्हारा मुझको मोहे, नैना करते बात ।
जनक दुलारी सीता मांगू, नेह पुष्प सौगात।।
मधुर प्रणय की बेला सीता, उर में रही विराज।
प्रथम मिलन यह देवी तुमसे, हृदय बसी तुम आज।।
चुनने को बागों में आया, सुंदर सुंदर फूल।
नैन मिले हैं जब से तुमसे, सिया गया सब भूल।।
कंपित होता तनमन मेरा, है ये कैसा राज।
प्रथम मिलन यह देवी तुमसे, हृदय बसी तुम आज।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’