सयाना
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लेखक डॉ अरूण कुमार शास्त्री
विषय चतुराई
शीर्षक सयाना
विधा कविता स्वच्छंद
मेरी चतुराई उसके नियम के विरुद्ध है
।
उसके चरणों में समर्पित जो उसको सब उपलब्ध है।
मैं अपनी चतुराई से हंसिल करूं जो ।
वो उसके आशीष सहित पूर्ण प्रतिबद्ध है।
मैं क्यों किसी का गला काटूं ?
मैं क्यों किसी से करूं ईर्ष्या ?
ईश्वर देगा भाग्य में लिखा है अगर जो ।
फिर काहे मैं पढूं किसी के नाम का कसीदा ।
प्राप्त है जो वही मुझको पर्याप्त भी होना चाहिए।
अन्यथा मेरे लिए अन्य विषय अपवाद होना चाहिए।
देखिए इन्सान अपने स्वार्थ को न जाने क्या क्या कर रहे ?
मार कर हक किसी मजलूम का घर अपना भर रहे।
इस तरह का आचरण समाज के विपरीत है।
संतुष्टि मिलती नहीं और दुःख ही दुःख से मर रहे।
योजना बना कर चतुराई से जो मेहनत की रोटी खा रहा।
ऐसा मुनष्य शांति से जीवन बिताता पूजा अर्चना कर रहा ।
कष्ट होता है सोचिए अगर कोई हक मारे किसी का ।
अन्त में तो सत्यता का ही परचम लहरा रहा।
मेरी चतुराई उसके नियम के विरुद्ध है
।
उसके चरणों में समर्पित जो उसको सब उपलब्ध है।
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