समुन्दर को तो सहरा की सियासत मार डालेगी
समुन्दर को तो सहरा की सियासत मार डालेगी
सदाक़त को ज़माने की शरारत मार डालेगी
हुआ उल्टा चलन है वक़्त का पहिया भी है गड़बड़
भलाई को बुराई की अदावत मार डालेगी
गवाही दौलतों की है न होगा न्याय फिर सच में
रहेगा झूट सच्चों को अदालत मार डालेगी
यहाँ कुछ भी नहीं अच्छा हवा विपरीत चलती है
करोगे बात सच्ची तुम बग़ावत मार डालेगी
कहीं पर बन्द धन्धे हैं कहीं बेरोज़गारी है
है महंगाई भी कितनी ज़रूरत मार डालेगी
यक़ीं ‘आनन्द’ जिस पर है वही धोखा भी देता है
जो साझे की तिजारत है तिजारत मार डालेगी
– डॉ आनन्द किशोर