Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Feb 2020 · 2 min read

समीक्षा, चश्मे का नम्बर बदल गया है, कविता, संदीप सरस

??????????
【गीत-चश्में का नम्बर बदल गया】
सुनो! आज अखबार मुझे दिखता है धुंधला,
सम्भवतः चश्मे का नंबर बदल गया है।

संबंधों में आना जाना कम हो यदि तो,
रिश्तों में गर्माहट कम होने लगती है।
बच्चे जब अपने पैरों पर चल देते हैं,
लहज़े में नर्माहट कम होने लगती है।

बहू हिकारत से देखे तो कष्ट नहीं पर,
बेटा भी भीतर ही भीतर बदल गया है।1।

अलमारी में पीतल के जो शिव बैठे हैं,
मैंने कल ही उनसे अपनी व्यथा कही थी।
वे तो अंतर्यामी हैं, जाने क्यों चुप हैं,
उन्हें पता है मैंने जो जो पीर सही थी।

गांव हमारे, पत्थर के भोले सुनते थे,
लगता है शहरों का शंकर बदल गया है।2।

जीवन की आपाधापी से ठहर गया हूं,
संघर्षों से अभी लड़ाई हो जाती है।
अपनों ने अपनापन टांगा है खूँटी से,
खुद से खुद की हाथापाई हो जाती है।

जीवन भर मैं जिन पर जान लुटाता आया,
आज उन्हीं अपनों का तेवर बदल गया है।3।

ईंट ईंट जो खून पसीने से सींची थी,
अपना घर संसार पराया सा लगता है।
प्राणों से प्यारे लगते थे जो भी रिश्ते,
उनका ही व्यवहार पराया सा लगता है।

वक्त बदलते ही निज़ाम है बदला बदला,
लगता है अब घर का लीडर बदल गया है।4।

जिन बच्चों की नज़र उतारा करते थे हम,
उनकी ही नजरों से अब हम उतर गए हैं।
अपना घर आँगन चौबारा अपना ही था,
गाँव छोड़कर जाने क्यों हम शहर गए हैं।

यहाँ मकानों में छत आँगन ही गायब हैं,
नपे तुले फ्लैटों में अब घर बदल गया है।5।

⬛【 संदीप मिश्र ‘सरस’
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी प्रसिद्ध कविता में कहा है एकला चलो रे, प्रस्तुत कविता में कवि, जीवन के एकाकी पन एवं वृद्धावस्था की मजबूरियों की ओर इंगित करता है। समय के साथ बात, व्यवहार ,रिवाज , रिश्ते,और समाज बदल जाते है। समाजिक परिवेश भी बदल जाता है। ऐसे समय में जीवन में एकाकीपन चारों ओर से घेर लेता है ।यह एकाकीपन अपनी जीवनसंगिनी से बिछड़ने के बाद भी हो सकता है ,और जीवनसंगिनी के साथ का अनुभव भी हो सकता है। संदीप जी ने बड़ी ईमानदारी से जीवन के इस एकाकीपन को अपनी रचना धर्मिता से उभारा है, उकेरा है इसके लिए कवि बधाई का पात्र है ।संदीप जी अपनी लेखनी सरिता द्वारा नपे तुले शब्दों में बड़ी बात कहते हैं। जैसे किसी कवि ने कहा है सतसैया के दोहरे ज्यों नाविक के तीर, देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर ।संदीप जी ने अपनी रचना में कहा है, जिन बच्चों की नजर उतारा करते थे हम।
उनकी ही नजरों से अब हम उतर गए हैं।
अपना घर आंगन चौबारा अपना ही था ।
गांव छोड़ जाने क्यों हम शहर गए हैं ।इन्हीं शब्दों के साथ संदीप जी को अपनी बात कविता के माध्यम से कहने के लिए बहुत-बहुत बधाई धन्यवाद।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम”

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 346 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
3966.💐 *पूर्णिका* 💐
3966.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
स्त्री मन
स्त्री मन
Vibha Jain
गर्मी की लहरें
गर्मी की लहरें
AJAY AMITABH SUMAN
ग़ज़ल _ सरकार आ गए हैं , सरकार आ गए हैं ,
ग़ज़ल _ सरकार आ गए हैं , सरकार आ गए हैं ,
Neelofar Khan
*खिले जब फूल दो भू पर, मधुर यह प्यार रचते हैं (मुक्तक)*
*खिले जब फूल दो भू पर, मधुर यह प्यार रचते हैं (मुक्तक)*
Ravi Prakash
निराशा से आशा तक 😊😊
निराशा से आशा तक 😊😊
Ladduu1023 ladduuuuu
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
भाई-बहिन का प्यार
भाई-बहिन का प्यार
Surya Barman
वर्तमान के युवा और युवतियां महज शारीरिक आकर्षण का शिकार हो र
वर्तमान के युवा और युवतियां महज शारीरिक आकर्षण का शिकार हो र
Rj Anand Prajapati
कौन कितने पानी में है? इस पर समय देने के बजाय मैं क्या कर रह
कौन कितने पानी में है? इस पर समय देने के बजाय मैं क्या कर रह
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
किस बात का गुमान है
किस बात का गुमान है
भरत कुमार सोलंकी
सन्यासी
सन्यासी
Neeraj Agarwal
जिन्दगी से भला इतना क्यूँ खौफ़ खाते हैं
जिन्दगी से भला इतना क्यूँ खौफ़ खाते हैं
Shweta Soni
अब तो रिहा कर दो अपने ख्यालों
अब तो रिहा कर दो अपने ख्यालों
शेखर सिंह
हमारा गुनाह सिर्फ यही है
हमारा गुनाह सिर्फ यही है
gurudeenverma198
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को समर्पित
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को समर्पित
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
तलाशता हूँ -
तलाशता हूँ - "प्रणय यात्रा" के निशाँ  
Atul "Krishn"
वेला
वेला
Sangeeta Beniwal
जादू  था या जलजला, या फिर कोई ख्वाब ।
जादू था या जलजला, या फिर कोई ख्वाब ।
sushil sarna
हार से भी जीत जाना सीख ले।
हार से भी जीत जाना सीख ले।
सत्य कुमार प्रेमी
🧟‍♂️मुक्तक🧟‍♂️
🧟‍♂️मुक्तक🧟‍♂️
*प्रणय*
दूरियां भी कभी कभी
दूरियां भी कभी कभी
Chitra Bisht
कूष्माण्डा
कूष्माण्डा
surenderpal vaidya
"सच्ची जिन्दगी"
Dr. Kishan tandon kranti
तुम नग्न होकर आये
तुम नग्न होकर आये
पूर्वार्थ
*तेरी मेरी कहानी*
*तेरी मेरी कहानी*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
ख्वाब में देखा जब से
ख्वाब में देखा जब से
Surinder blackpen
प्रेम हैं अनन्त उनमें
प्रेम हैं अनन्त उनमें
The_dk_poetry
डॉ. नामवर सिंह की आलोचना के प्रपंच
डॉ. नामवर सिंह की आलोचना के प्रपंच
कवि रमेशराज
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Loading...