समय का प्रवाह
समय का प्रवाह
प्रवाह काल चक्र का अनादि अन्तहीन है।
रुके कभी नहीं बढ़े सदा भविष्यगीन है।
चले सदैव एक ही दिशा नया-नया करे।
बदल रहा समग्र को कहीं हरे कहीं भरे।
सबक सिखा रहा समय सुधार कर प्रगति करो।
सशक्त काल का बहाव संग- संग नित चरो।
डरो सदा कुचाल से यही समय पुकारता।
करे कुकृत्य पाप कर्म को समय बिगाड़ता।
विरोध काल का कभी नहीं दिखे सुसम्भवम।
सदैव सीख काल से विचार सत्य सम्भवम।
साहित्यकार डॉ0 राम बली मिश्र वाराणसी।