समंदर की बांहों में नदियां अपना वजूद खो,
समंदर की बांहों में नदियां अपना वजूद खो,
हो जाती खारा.. पर ना अकुलाती
विभु विभावरी घनेरी तारे को भी अपने आगोश ले निशा का अंग बन भी ना बड़बड़ाती
वजूद खो, अपना हो जाती स्याह ..
हो पात से ज़ुदा पत्र पुष्प मिट्टी में समा जाती
अपना वजूद खो, हो जाती उर्वर ,
अनुप्राणित करती कोई न कोई हिस्सा
जिस जिस ने त्याग किया बलिदान दिया अस्तित्व अपनाशिखर उत्तुंग सा उठा ही सदा ,
तोड़ती है धार जब भी किनारा सारा
रिक्त स्थान त्वरितपूर्ण कर आकार बढ़ाती दु ना
जो कभी टूट हो जाऊ मैं भी हो जाऊं फना
छोटा सा बिंदु खंडअंश रूप में
जीवित रहूंगी सृजन पटल पर मै सदा ।
ये विश्वास ही मेरी शक्ति है
जो बनाती उर्वर लेखनी मेरी सर्वदा
पं अंजू पांडेय