सभी से वो जुदा था याद होगा
सभी से वो जुदा था याद होगा
अजब सा सिरफिरा था याद होगा
बड़ा इक हादसा था याद होगा
मगर वो बच गया था याद होगा
चमक थी उसकी आंखों में ग़ज़ब की
मुहब्बत से मिला था याद होगा
उसे ग़म था बिछड़ने का सभी से
अकेला रो रहा था याद होगा
वही ग़म वक़्त फ़िर से दे रहा है
मुक़द्दर ने दिया था याद होगा
मिले थे हम वहां पर उस किनारे
शुरू में जो हुआ था याद होगा
वही तो लग रहा था सबसे आगे
वो पहले से खड़ा था याद होगा
पिये थे ख़ूब सारी रात में वो
सवेरे, क्या किया था याद होगा
झुका सर चूमता था वो ज़मीं को
वही ‘आनन्द’ सा था याद होगा
– डॉ आनन्द किशोर