” ————————————————- सबकी आंखें गीली ” !!
नही बाल्यपन रहा सुरक्षित, सोच हुई जहरीली !
ममता यहां गुहार लगाये , सबकी आंखें गीली
विद्यालय में कहां है दीक्षा , साधन आमदनी के !
जागी आंखों के सपने हैं , दुनिया है सपनीली !!
सरकारें बेदम लगती अब , हैं शिक्षा शिक्षक कोरे !
खाना , पुस्तक और वजीफा , लागे नीति सजीली !!
गुरु हुआ गूगल अब देखो , घटी महत्ता गुरु की !
मात पिता का घटा दायरा , हुई व्यवस्था ढीली !!
” काम ” यहां सिर चढ़ता दिखता , कोई नहीं अछूता !
धर्म समाज हुऐ दूषित हैं , नीयत हुई हठीली !!
गिरते रोज चरित्र अनेक हैं , गिरती है नैतिकता !
लाज संकोच नहीं शेष यों , पछुआ हवा रंगीली !!
दोस्त हमें अब बनना होगा , साहस भरना होगा !
नई पीढियां लड़ पायेगीं , राहें मिले कटीली !!
बृज व्यास