” सफलता का मंत्र “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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( १ )
ऋदय बिदीर्ण हुआ है मेरा,
अंगों का पक्षाघात हुआ !
जिस आशा से बाग लगाया ,
पतझर से सब टूट गया !!
( २ )
जिम्मेदारी से दूर रहे हो ,
घर को घर नहीं समझते हो!
क्या जीवन का मूल्य यही है ,
झूठे आडम्बर करते हो !!
( ३ )
धारा गति को छोड़ हमेशा ,
उल्टी राह जो जाता है !
उसका जीवन सब कुछ पाकर ,
औन्धे मुँह गिर जाता है !!
( ४ )
झूठों की नीवों पर हम ,
कुछ क्षण तो इतराते हैं !
पर लोगों के सन्मुख होकर ,
अंतरात्मा से घबराते हैं !!
( ५ )
जिस सामाज में रहकर प्राणी ,
लोगों को न पहचान सके !
उसका जीवन क्या है जीवन ,
जो दर्द किसी न बाँट सके !!
( ६ )
है स्वतंत्र जीवन हम सबका ,
राह हमीं को चुनना है !
अपने कर्मो को निर्मल कर ,
नये समाज को गढ़ना है !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत