सपनों में रोज रोज आते हो
सपनों में रोज रोज आते हो
खुद से ऐसे मुझे मिलाते हो
अपनी यादों के फूलों से ही तुम
मेरी तनहाइयाँ सजाते हो
जानते जब हो प्यास को मेरी
गम विरह का ही क्यों पिलाते हो
ये तुम्हारी अदा लगे प्यारी
झूठा गुस्सा मुझे दिखाते हो
कसमें देते हो प्यार की अक्सर
बोली क्यों प्यार की लगाते हो
बन गये मेरी ज़िंदगानी जब
क्यों मुझे अब भी आजमाते हो
अर्चना’ क्यों जमाने से डरकर
प्यार आंखों से ही जताते हो
04-01-2018
डॉ अर्चना गुप्ता