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24 Nov 2022 · 1 min read

सपने जब पलकों से मिलकर नींदें चुराती हैं, मुश्किल ख़्वाबों को भी, हक़ीक़त बनाकर दिखाती हैं।

वो रौशनी जो अंधेरों से छन कर आती है,
रूह को सुकून की सौग़ात देकर जाती है।
बारिशों के इंतज़ार में जब आँखें पथराती हैं,
तभी तो बूँदें भी कोपलों को रास आती हैं।
ये सुबह भी, कहाँ ऐसे हीं चली आती है,
रात की घनी चादर को चीर कर मुस्कुराती है।
हवाएँ जब आँधियाँ बनकर, क्षितिज़ से टकराती हैं,
तेरी खुशबू मेरे शहर तक, तभी तो साथ लाती है।
ये कदम ठोकरों से, हर पल खुद को बचाती है,
पर सही मायने में चलना, तो गिरकर हीं सीख पाती है।
सपने जब पलकों से मिलकर नींदें चुराती हैं,
मुश्किल ख़्वाबों को भी, हक़ीक़त बनाकर दिखाती हैं।
अच्छे वक़्त में विकल्पों से, दुनिया भले सज जाती है,
पर अपनों की पहचान, बुरे वक़्त का बवंडर हीं तो करवाती है।
अनवरत धोखों से विश्वास की नींव डगमगाती है,
पर आस्था की एक बूँद, उस पाषाण बने ईश्वर को भी जगा जाती है।

3 Likes · 2 Comments · 284 Views
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