सदा दिल की सदारत हो रही है
सदा दिल की सदारत हो रही है
तभी जीवन में राहत हो रही है
अभी तो दिल में चाहत हो रही है
तेरी हो दीद हसरत हो रही है
सनम तुमसे मुहब्बत हो रही है
ज़माने को तो किल्लत हो रही है
समझने में तो दिक्कत हो रही है
नज़ाकत या अदावत हो रही है
बिना ही बात शोहरत हो रही है
अजब इस दिल को दहशत हो रही है
सफ़र आसान सा लगने लगा अब
मिले हो आप हिम्मत हो रही है
किया है इस जहाँ ने इश्क़ रुस्वा
ज़माने से शिकायत हो रही है
अभी है रात होनी है सहर भी
तमन्ना फिर से आफ़त हो रही है
किया है दोस्तों ने हाल ऐसा
अदू से अब मुहब्बत हो रही है
बहाकर ख़ून अपना सरहदों पर
वतन की यूँ हिफाज़त हो रही है
उसी का नाम है ‘आनन्द’ लब पर
इसी से रोज़ बरकत हो रही है
शब्दार्थ:- अदू = दुश्मन
डॉ आनन्द किशोर