सत्कर्मों का फल सुखदायी….
खुशी मुझको रास न आयी…
खुशी मुझको रास न आयी
गहन उदासी मन पर छायी
एक किरन उजली उषा की
मुझ तक आने से कतरायी
गुम गए सारे सुखद नज़ारे
ढली साँझ निशा गहरायी
ऐसा भी क्या दोष था मेरा
जो हिस्से मेरे रात ही आयी
की ही नहीं जो गलती मैंने
सजा उसकी क्यूँ मैंने पायी
मुक्ति न गम से मुझे मिलेगी
बात ये गहरी मन में समायी
तकते-तकते राह सुखों की
हारे नयन नज़र पथरायी
मिलेगा अश्कों को हरजाना
रिसते जख्मों को भरपायी
यही आस विश्वास यही है
सत्कर्मो का फल सुखदायी
पौ फटते ही अरुण रवि ने
उलझी हर गुत्थी सुलझायी
गाँठ बाँध ले बात ये “सीमा”
अंत सदा सच का शुभदायी
-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“विवान” से