सतनाम रावटी दलहा पहाड़
.सतनाम रावटी दलहा पहाड़
लोगों की बैठी हुई भीड़ को देखकर एक बूढ़ी माता बैशाखिन जिज्ञासा वश उनके पास जाकर बैठ गई । सामने बाबा गुरु घासीदास जी प्रवचन दे रहे थे । बीच -बीच में छोटी – छोटी दृष्टांत कथाऍं,कहावतें और मुहावरें बातों को वजनदार बनाकर सत्य की अनुभूति करा रहे थे ।
उनके प्रवचन से आत्म विभोर बैशाखिन घर जाकर जो कुछ समझ सकी उन तमाम बातों को अपने पति फिरन्ता को बताने लगी । फिरन्ता का गुस्सा सातवें आसमान में चढ़ गया । बोले वह कोई जादूगर है। उसकी बातों को हमें सुनना ही नहीं । वह हमारा धर्म भ्रष्ट करना चाहता है, उनसे दूर ही रहो । मैं तो उस राह में ही नहीं जाऊँगा जहाँ वह जादूगर रहता है।
दूसरे दिन फिरन्ता दलहा पहाड़ में जहाँ गुरु घासीदास जी रावटी लगाये थे, ठीक उसके विपरित दिशा में लकड़ी चुनने चले गये । घर में जलाने के लिए लकड़ी थी ही नहीं इसलिए आज उन्होने सूखी लकड़ियों को चुन एक बड़ा गट्ठा बनाया । बहुत जोर देकर उठाया वह गट्ठा उनसे न उठ सका परेशान हो मदद की आस में इधर – उधर देखते घण्टा भर बीत गया था, पर उस सुनसान इलाके में कम लोग ही आना जाना करते थे। मायूस हो बैठा ही था कि उसे जंगल के रास्ते से कोई पथिक आता दिखाई दिया । उसका हौसला कुछ बढ़ा उसने पथिक से बोझ उठाने में मदद माँगी पथिक ने देखा दुबला – पतला सा वह उम्र दराज बुजुर्ग लकड़ी का गट्ठा न उठा पायेगा, न घर ले जा पाएगा। पथिक ने मुस्कुराते हुए वह गट्ठा अपने सिर में उठा लिया । बोला बाबा जी आप नहीं ले जा पाएँगे चलो मैं भी बस्ती की ओर ही जा रहा हूँ । आपकी लकड़ी ले चलता हूँ ।.”बेटा तुम ईश्वर के अवतार हो कोई दूसरों के लिए इतना कुछ नहीं करता । तुम दया के सागर हो, ऊपर वाला तुम्हारा भला करे ।” दुआएँ देता हुआ बुजुर्ग पथिक के आगे – आगे चलने लगा। “तुम भले मानुष हो तुम्हें एक बात बताता हूँ, वैसे तो यहाँ सब ठीक – ठाक है ; पर कुछ दिनों से यहाँ एक जादूगर आया है। वह बड़ा क्रूर, निर्दयी और दुष्ट है । उसका नाम गुरु घासीदास बाबा जी है। वह लोगों को अपने जाल में फाँसता है और जबरन अपनी बात मनवाता है। यहाँ तक कि वह धर्म परिवर्तन भी करवाता है। अरे जिस धर्म को कोई पीढ़ियों से मानता आ रहा है उसे भला क्यों छोड़ें मैं तो कभी नही छोड़ूंगा,तुम भी मत छोड़ना ।” हाँ सही कह रहे है आप उस पथिक ने कहा । बात ही बात में उस बुजुर्ग ने बताया मेरी40 वर्ष की उम्र में मेरा बेटा पैदा हुआ था 35 की उम्र में मेरा बेटा पिता बना था। आज मैं 75 साल का हूँ । किसी बीमारी के चलते मेरे बेटे – बहू का निधन हो गया है । घर में मेरी पत्नी और एक 10 साल का एक पोता है। जो दो माह से बुखार से पीड़ित है। बहुत परेशान हूँ, कई जगह झाड़ – फूँक,दवा – दारू कर ली पर सब बेअसर है । मेरी ऊपर जाने की उमर में लगता हैं मेरा पोता ही मुझसे पहले ऊपर चला जाएगा। हम दोनों पति – पत्नी को बस यहीं चिंता खाये जा रही है।बुजुर्ग की आँखे भर आयी । बुजुर्ग अपने घर की राह बताते हुए आगे- आगे और लकड़ी का बोझ उठाये पथिक पीछे – पीछे चल रहा था । पर ये क्या राह में जितने लोग मिले बड़े कौतुहल और आश्चर्य से पथिक और बुजुर्ग को देख रहे थे क्यों कि अधिकांश लोग पथिक को पहचान रहे थे।पथिक उन्हें कुछ नहीं बोलने का ईशारा करते जा रहे थे। बातें करते हुए वे घर पहुँच गये। बुजुर्ग ने आँगन में लकड़ियाँ रखवा दी । तभी खाट में पड़ा बीमार पोता पानी माँगा । उनकी दादी कुछ सामान लाने बाहर गई थी । बूढ़े ने पोते को पानी पिलाया और पथिक को अपना पोता दिखाते हुए कहा यही है मेरा पोता, अब क्या होगा ऊपरवाले ही जाने ।पथिक संयोग से कुछ जड़ी – बूटी अपने गमछे में बाँध रखा था ।बुजुर्ग को दवा देते हुए कहा इसकी इतनी मात्रा एक लोटे पानी मे पकाना जब पानी आधा गिलास बचे तब इसे ठण्डा करके सुबह, दोपहर, शाम और रात को अपने पोते को पिलाना और उसे उबला हुआ पानी ही ठण्डा करके देना । ये तीन दिन की खुराक है यदि दवा से लाभ हो तो और दवा हेतु आप दलहा पहाड़ में आ जाना, वहाँ आपको और दवा मिल जाएगी।अच्छा ठीक है चलता हूँ बाबा जी कहकर पथिक जाने लगा, बुजुर्ग उसे कुछ देना चाहता था,पर उसके पास देने के लिए कुछ भी न था।कृतज्ञता से वह पथिक को दुआएँ दे रहा था । पथिक के जाने के बाद वैशाखिन आयी लकड़ी के गट्ठे को देख कर बोली इतनी लकड़ी जवानी में नहीं ला पाते थे बुढ़ापे में इतनी ताकत कहाँ से आ गई ।बूढ़े ने कहा – एक नेक दिल भला मानस मिल गया था, परमात्मा उसे सुखी रखे । लकड़ी लाने से औषधि बताने तक की सारी बातें उसने पत्नी को बताई । उसका नाम क्या है ? ये तो मैं पूछना ही भूल गया हँसमुख चेहरा, ऊँची कद – काठी, मीठी जबान, उसे देखकर लगा मानो मैं उसे बरसों से जानता हूँ, यही कारण था कि उसका नाम नहीं पूछ पाया । पर उसने कहा है कि वह दलहा पहाड़ में मिलेगा । पथिक की दी हुई औषधि को उबालकर नियमानुसार उन्होंने पिलाया तीन दिन में बहुत सुधार हो गया आगे की दवा के लिए बुजुर्ग दलहा पहाड़ गया ।वहाँ भीड़ लगी हुई थी प्रवचन चल रहा था ।बुजुर्ग प्रवचन कर्ता का चेहरा देख नहीं पा रहा था।ये सोचकर कि बुजुर्गों ने कहा है कि, “जहाँ ज्ञान की दो बातें सुनने को मिले जरूर सुनना चाहिए ।” बुजुर्ग बैठ कर सुनने लगा। जहाँ गुरु घासीदास जी सतनाम धर्म की व्याख्या करते हुए कह रहे थे कि, इस धर्म में सब समान हैं यहाँ कोई ऊँच -नीच नहीं,यहाँ कोई वर्ग भेद नहीं। यहाँ अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए किसी के आश्रय की जरूरत ही नहीं, यहाँ हर मनुष्य अपनी मुक्ति का स्वयं माध्यम है। धर्म मनुष्य में नैतिकता को जागृत व स्थापित करने और जीवन को सही दिशा देने के लिए है । धर्म मानवता का साधन है । किसी भी स्थिति में धर्म स्वयं साध्य नहीं । अतः धर्म का उद्देश्य मानवता को स्थापित करना ही है । जो धर्म स्वयं को साध्य और मानवता को साधन मानता है, वहाँ धर्म के नाम पर शोषण ही होता है ।ऐसे शोषण और मानसिक गुलाम बनाने वाले धर्म को धर्म नहीं पाखण्ड समझना चाहिए । धर्म मानव को पिंजरे में बाँधने के लिए नहीं वरन विचारों को व्यापक करने में सहायक होने के लिए है । रूढ़िवादी और दकियानुसी विचारों और व्यवहारों को सदैव के लिए अपनायें रखना, नवीन विचारों, परिवर्तनों को स्वीकार नहीं करना, सदैव पुराने मान्यताओं को ही सहीं ठहराना, वह भी केवल इसलिए कि कुछ धर्माचार्यों ने यह लिख दिये हैं कि, इसे ईश्वर ने लिखा है। इसे तुम सदैव स्वीकार करो lधर्म पर प्रश्न उठाने वाला रौरव नर्क का भागी होगा । ईश्वर को जानो नही मानो ।अब बताओ जहाँ नवीन विचारों को सोचने, समझने,जानने, प्रश्न पूछने,तर्क करने का मार्ग ही बन्द कर दिया गया हो, जहाँ पहले से चली आ रही शोषण पर आधारित परम्परा को ही चलाने का ताना – बाना बनाया गया हो । जो अन्धेरे में हैं, वे अंधेरे में ही रहेंगे ।उनके भाग्य में ही ऐसा लिखा है,सोच भरना ही जिनका काम हो ऐसे में मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी ।हम सपने में भी वर्तमान और भविष्य को बदलने का प्रयास ही नहीं कर पाएँगे । बस भगवान भरोसे बैठे रहेंगे।परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है पर अपने लाभ के लिए धर्म के ठेकेदार परिवर्तन के नियम को धर्म के मामले में लागू ही नहीं करना चाहते । सोच कर देखिए क्या जो गन्दगी भरे राहों में चल रहे हैं वे और उनकी पीढियाँ उन्हीं गन्दगी में जीवन यापन करें उन्हें ये तुम्हारे भाग्य में लिखा है, यह कहकर शान्त कर देना क्या उचित है? सतनाम धर्म स्वतंत्रता,समानता और बन्धुता की बात करता है। हजारों वर्षो से चली आ रही गलत परम्परा का विरोध करती है,उसमें सम्यक सुधार चाहती है, पर यह सुधार परजीवियों की तरह शोषण करने वालों को समाप्त कर देगा अत: वे इसे स्वीकार ही नहीं करेंगे । अपितु तुम्हें वर्गों में बाँटकर तुम पर राज करेंगे ।जंगल में छोटी संख्या वाले जीवों का शिकार करना शिकारी जीवों के लिए आसान होता है । पर ज्यादा संख्या वाले जीव का शिकार करने के लिए शेर भी घबराता है । कुछ वनभैसे हो तो वे आसानी से शिकार हो जाते हैं, पर उनकी संख्या ज्यादा हो तो शेर की हिम्मत नहीं होती कि उन्हें छू ले । जब तक हमारे बीच भेद रहेगा हम बँटे रहेंगे,हमारा शोषण होता ही रहेगा, अब समय आ गया है, हम सब समानता का सूत्रपात करने वाले सतनाम धर्म के नीचे एकत्र हो जाएँ, और सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सभी दृष्टि से अपने आप को मजबूत करें । सतनाम धर्म मानव ही नहीं हर जीव को समान सम्मान देता है, इस धर्म का मानना है कि धरती पर जितना आपका हक है उतना ही सामने वाले का है। इस भाव को गाँठ बाँधकर जो आत्मसात करना चाहता है ।इस धर्म के द्वार ऐसे लोगों के लिए सदैव खुले हैं।
फिरन्ता पूरे जीनव में पहली बार मन को उद्वेलित करने वाले इंसान को देख उनके विचारों में खो सत्य का चिंतन करने लगा । मन में सोचा हो न हो यही गुरुघासी दास है जिसके बारे में बैशाखिन बता रही थी। सचमुच यह अद्वितीय पुरुष हैं,और समता परक सतनाम धर्म ही वास्तविक धर्म है । ऐसे धर्म को बिना देर किये मैं सतनाम अमृत पान कर अभी आत्मसात करूँगा ।यह कहते हुए वह सतनाम धर्म का उपदेश देने वाले गुरु घासीदास जी के पास जैसे ही पहुँचे तो देखा यह तो वही पथिक है जिसने मेरी मदद की थी, जिसकी तलाश में मैं यहाँ आया हूँ। मेरी सोच इस महामानव के लिए कितनी गन्दी थी । पश्चाताप के अश्रु उनकी आँखों से बहने लगे, मन का सारा मैल अश्रु में बह गया,उनका रोम – रोम सतनाम मय हो गया वे दौड़कर गुरु घासीदास जी के चरणों मे गिर पड़े और अपने द्वारा अज्ञानता में उनके लिए कहे अपशब्दों के लिए क्षमा याचना कारने लगे । बाबा जी ने उन्हें हृदय से लगा लिया। फिरंता बाबा जी के हाथों सतनाम अमृत का पान किया, आज पहिली बार उसे जिस अनुपम सुख और शांति की अनुभूति हो रही थी ऐसी अनुभूति उसने जीवन में कभी अनुभव नहीं किया था।सारा संसार उसे सतनाम मय नजर आ रहा था।
✍️जुगेश कुमार बंजारे ‘धीरज’
नवागाँवकला छिरहा दाढ़ी बेमेतरा (छ,ग.)
मो 9981882618