सजल…
?? सजल ??
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दिन रात क्यों रहता हूँ मैं तेरे खयाल में?
ये जिंदगी उलझी है इक छोटे सवाल में!
घर से निकल के देखना चाहता हूँ दुनियां।
जाऊं भी तो कैसे इस बेढंगे-हाल में।
मारी जो एक आँख थी मटका के भौंह को।
पुरजोर लुटे भरतपुर अब महिनों मलाल में।
संस्कृति विरोध को यहाँ पर तैयार हैं सभी।
आना ही लहू भूल गया इनका उबाल में।
लुटवा के बैंक भाग गया नीरव विदेश में।
कहती फिरे पीएनबी हो गई निहाल मैं।
कुछ भूल से कुछ शौक से सत्ता जो चुन गए।
अब मारते फिरते हैं सर अपना दिवाल में।
जितना कहेगा ‘तेज’ तू उतना ही जग हँसे।
सब त्याग के मन को लगा राधे-गोपाल में।
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?तेज✏️मथुरा✍️