सजल
सजल
तुझे देख मन खुश हो जाता।
तेरा दर्शन सदा लुभाता।
तुम्हीं एक प्रिय मोहक निर्मल।
सच्चाई की राह बताता।
जब तुम मिलते नहीं कभी तो।
दिल में हरदम कष्ट सताता।
मन विक्षिप्त हुआ करता तब।
तन उदास हो उर पगलाता।
तेरा ही है एक सहारा।
तेरा ही दीदार सुहाता।
यह सारा संसार व्यर्थ है।
तुम बिन मन यह नहीं अघाता।
मेरे प्यारे नियमित मिलना।
तुझसे स्नेह कमल खिल जाता।
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।