सजल
सजल
1222,1222, 1222,1222
डराता अक्स अपना ही,नयन हैं खोफ में रहते।
बनेंगे और अफसाने, तभी चुपचाप हैं सहते।।
सुनाये दर्द भी कैसे, सुनेगा कौन दुनियां में,
यहाँ हैं लोग मतलब के, तभी बस बात हैं करते।
मरेगा कब निशाचर ये, रहे जो साथ साये सा,
कहे अभिमान हम इसको, अकड़ कर हैं सभी चलते।
बहुत सी भीड़ दिखती, नज़र भर देख ले जिधर,
अकेले लोग फिर भी हैं, जियें हैं आह को भरते।
उदासी से भरा है आलम,लबों से हास रूठा है,
करो कुछ तो जरा सीमा,रहे दुख ताप से बचते।
सीमा शर्मा