सजल
सजल
खून से लथपथ लड़की
बह्र – 1222-1222, 1222-1222
पड़ी थी खून से लथपथ, मरी लड़की किसी की थी।
बसी थी जान उसमें ही, उसी का दाह करवाया।।
बने हैं जानवर कैसे, बदन को नोच है डाला।
कली थी जो अभी महकी,सनी है खून से काया ।।
पुकारा नाम अपनों का, निराशा हाथ आयी थी।
धरा पर लोग कितने है, किसी को पास नहिँ पाया।।
मिला क्या जान को ले कर, किसी की गोद सूनी की।
पिता की आस टूटी है, घना अंधेर अब छाया ।।
भयानक रात वो कैसी, लुटी थी लाज जब उसकी।
नजारा मौत का देखा, पड़ा यमराज का साया।।
बिलख कर मात रोती है, कभी तस्वीर है देखे।
कभी बेहोश होती है, सितम कैसा खुदा ढाया ।।
रिसे था खून जख्मों से, पड़ा था गात भी घायल ।
नहीं चीखें सुनी उसकी,समा भी क्रूर था आया ।।
दिया हर आँख में आँसू, सहम उठता जहाँ सारा।
छिपाए पीर मन हर जन, फिरे लाचार खिसियाया ।।
करी है पार हर सीमा, जलालत का नजारा था।
तमाचा मौत है उसकी,जमाना देख गर पाया।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’