सजना कहाँ गइलऽ ?
हमें तूँ छोड़ि मेला में, भला सजना कहाँ गइल ?
न सूझत राह रेला में, भला सजना कहाँ गइलऽ ?
डगर चारू तरफ फूटल, बुझाता ना कहाँ जाईं ?
हईं भटकत अकेला में, भला सजना कहाँ गइलऽ ?
बतावे जे जहें तहके, तहें धाईं बनल पगली
फँसाके बड़ झमेला में, भला सजना कहाँ गइल ?
कहीं बा राह में खाई, चढ़ाई बा मिलत कतहूँ
चलीं जोताँस ढेला में, भला सजना कहाँ गइलऽ ?
रहल हऽ किरिन जबले, हम भटकनी हँ तले ‘अवधू’ लगे डर साँझ बेला में, भला सजना कहाँ गइल ?