सच का सामना
दूसरों में ख़ामी क्या ढूंढते फिरते हो,
अपनी ख़ुदी को टटोलकर तो देखो,
गैरों के दाम़न के दाग़ों को उजागर करने की कोशिश में लगे हो,
अपने गिरेबाँ की असलिय़त में झांँक कर तो देखो,
झूठ के लबादों में अपने गुनाहों को छुपाते हो,
सिर्फ़ एक बार सच का सामना करके तो देखो,
तारीफ़ के पुलों से अपना कद बड़ा समझते हो,
कभी अपनी हस्ती से दो चार होकर तो देखो,
ख्व़ाबों की दुनिया के आसमाँ में उड़ते हो,
हक़ीक़त की ज़मीं पर कदम रखकर तो देखो ,