सच कहते हैं, जिम्मेदारियां सोने नहीं देती
सच कहते हैं, जिम्मेदारियां सोने नहीं देती
भोर फटे जब चिड़िया चहके,
मुर्गे की बांग, सोने नहीं देती,
‘झाड़ू की सर सर, सड़क की चहल-पहल’,
शोर जल्दी उठने पर मजबूर कर देती है,
सच कहते हैं जिम्मेदारियां सोने नहीं देती।।
जब बाकी बच्चे खेल के मैदान में किलकारी मारे,
मजदूर बालक को ईटों की परात सोने नहीं देती,
‘आज कितना बोझ ढोना है, ऊपर नीचे कितने चक्कर लगाने हैं’,
ख्याल दिल को झंझोर कर रख देते हैं,
सच कहते हैं जिम्मेदारियां सोने नहीं देती।।
जब गाड़ी मोटर की आवाज कानों में पड़ती है,
मशीनों की कर्कश ध्वनि सोने नहीं देती,
‘मजदूरी कितनी होगी, कितना राशन घर जाएगा संग मेरे’,
जैसे विचार दिल दहला देते हैं,
सच कहते हैं जिम्मेदारियां सोने नहीं देती।।
मंदिर में जब घंटा बजे,
कानों में रस घोलती ध्वनि, सोने नहीं देती
‘मां तोलिया कहां है, कपड़े स्त्री किए हैं क्या’,
जैसे शब्द गूंजते रहते हैं,
सच कहते हैं, जिम्मेदारियां सोने नहीं देती।।
स्कूल की बस का जब होरन बजे,
विनती से पुकारते अल्फाज सोने नहीं देती,
‘मेरा टिफिन कहां है, मेरा लैपटॉप कहां है’,
जैसी अरज दिल को मोह लेती हैं,
सच कहते हैं, जिम्मेदारियां सोने नहीं देती।।
जब शाम ढले सूरज छिपने लगे,
बच्चों की जरूरतें सोने नहीं देती,
‘आज बड़े को जूते दिलवाने हैं, छोटी को किताब दिलवानी है’,
जैसे मनन अंतर्मन में चलते रहते हैं,
सच कहते हैं जिम्मेदारियां सोने नहीं देती।।
जब दिन ढले, आसमान में तारे हो,
बड़े बुजुर्गों का ख्याल सोने नहीं देती,
‘मां को दवा देनी है, बाबा को कंबल उठानी है’,
फिक्र मेरी, नींद उड़ा देती है,
सच कहते हैं जिम्मेदारियां सोने नहीं देती।।
#seematuhaina