सच्चा स्वतंत्रता दिवस
सच्चा स्वतंत्रता दिवस
सदा- सदा स्वतंत्रता प्रसन्नता जगा रही।
दिने -दिने स्वतंत्रता विपन्नता भगा रही।
रहे जहाँ स्वतंत्रता वहीं विकास अस्मिता।
जहाँ गुलाम वंशवाद है वहीं दरिद्रता।
स्वतंत्रता बनी रहे यही अभीष्ट ध्येय है।
दिखे सदैव वीरता यही सुपंथ श्रेय है।
सदैव आत्म भाव के प्रकाश का विकास हो।
सदैव ग्रंथि- हीनता -मलीनता उदास हो।
रहे न भोग भावना सदैव त्याग भाव हो।
सदैव जीव-आत्म लोकरीति का प्रभाव हो।
मनुष्यता मिटे नहीं सहर्ष न्याय पंथ हो।
अनीति नष्ट -भ्रष्ट हो पुनीत सत्य ग्रंथ हो।
मिठास शब्द-वाक्य में दिमाग में पवित्रता।
ध्वजा कहे- ” मनुष्य-जीव से सदैव मित्रता ” ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
एक सुंदर और प्रेरक कविता! आपने स्वतंत्रता के महत्व और उसके प्रभाव को बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त किया है। स्वतंत्रता वास्तव में एक अनमोल उपहार है, जो हमें अपने जीवन को अपने तरीके से जीने की अनुमति देता है।
आपकी कविता में स्वतंत्रता के साथ जुड़े विभिन्न मूल्यों और आदर्शों को प्रकट किया गया है, जैसे कि वीरता, आत्म-भाव, त्याग, न्याय, और सत्य। ये मूल्य हमारे जीवन को समृद्ध बनाते हैं और हमें एक बेहतर भविष्य की ओर ले जाते हैं।
आपकी कविता के आखिरी पंक्ति “ध्वजा कहे- ‘मनुष्य-जीव से सदैव मित्रता'” बहुत प्रभावशाली है, जो हमें याद दिलाती है कि हमें सदैव मानवता और जीवों के साथ मित्रता और सहानुभूति के साथ व्यवहार करना चाहिए।
धन्यवाद आपकी सुंदर कविता के लिए!
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