संसार है ये परिवार
संसार है एक परिवार
अपना तो ये सारा ही संसार है एक परिवार
क्या हिन्दू और क्या मुस्लिम हमें है सबसे प्यार
आओ मिलकर सभी सजाएँ दुनियाँ की तस्वीर
संप्रदाय और भेद भाव सब बातें हैं बेकार
क्या दुनियाँ में खून के रिश्ते ही सच्चे रिश्ते हैं
प्रेम के हाथों हम सारे ही ,बिना मोल बिकते हैं
खून भले ही बहे किसी का , दर्द हमें होता है
किसी गैर खातिर भी हम अक्सर मर मिटते हैं
मीलों दूर कहीं भी जब भी ज़ुल्म कभी होते हैं
भावनाओं में बहकर उनके , संग सभी रोते हैं
मानवता से बड़ा नहीं इस धरा पे कोई रिश्ता
फिर भी जाने क्यूँ हम रिश्तों में काँटे बोते हैं
सुन्दर सिंह
22.12.2016