संवेदना
संवेदना
मनुष्य होकर भी मनुष्यता से हीन है।
पशु सम निरा मानव,संवेदना विहीन है।
न हो हृदय में दर्द पीड़ितों को देखकर ,
हृदय शून्य व्यक्ति वह स्वार्थ में प्रवीण है।
देख दुख किसी का हृदय करता आह नहीं,
देखता अन्याय मौन हो न्याय की चाह नहीं।
देते पीड़ा प्रसन्न हो निज स्वार्थ की सिद्धि हो,
है संवेदना शून्य मनु मनुष्यता की राह नहीं।
पहने मुखौटा अच्छाई का धर्म का दिखावा है,
अपना बनकर धोखा करे करते नित छलावा है।
विद्रोह की आवाज को अपने जुल्म से दबा रहे,
संवेदना को छोड़कर पशुता का ऐसा चलावा है ।
संवेदना जगे जग में भाव का ऐसा प्रवाह हो ,
प्रेम मैत्री दया करुणा मनुष्यता में उछाह हो।
देख क्रंदन मित्र का दुखित ह्रदय जब आप हो,
संवेदना बन जाती पूजा जब सर्वहित की चाह हो।
स्वरचित एवम मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश