संघर्ष
करके मंथन
जीवन समुद्र का
मथ कर गरल
अन्तर्विरोध रूपी
मंजुल अमिय ग्रहीत
कर के प्राप्त कर ले
मनुज तू
उत्तुंग शिखर
जीवन रूपी हिमाद्रि का।
कभी सवार
हो संघर्ष तरणी पर
उदधि मध्य
उदात्त वीचियों संग
द्वन्द्व युद्ध से
हासिल कर तू
सौम्य हिरण्य-सी कांति-सा जीवन।
हो संघर्षों से तप्त
दमके मार्तण्ड रश्मि-सा
यह तन मन जीवन।
निखारे पग-पग पर
संघर्ष ही
जीवन मानव का।
बूते संघर्ष के
ही टिक पाता
मनुज
इस संसृति में।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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